दिल-रुबा पहलू से अब उठ कर जुदा होने को है क्या ग़ज़ब है क्या क़यामत है ये क्या होने को है दुश्मनी-ए-ख़ल्क़ मेरी रहनुमा होने को है अब मिरा दस्त-ए-तलब दस्त-ए-दुआ होने को है तू ने चाहा था बुरा मेरा भला होने को है आब-ए-ख़ंजर हल्क़ में आब-ए-बक़ा होने को है आज तो जी भर के पी लेने दे ऐ साक़ी मुझे जान ही जाती रहेगी और क्या होने को है ऐ दिल-ए-पुर-आरज़ू कर दे सर-ए-तस्लीम ख़म देख किन हाथों से ख़ून-ए-मुद्दआ होने को है शोख़-रफ़्तारी का अपनी देख तो मुड़ कर असर साथ साथ उठ कर रवाँ हर नक़्श-ए-पा होने को है