दिल-शिकस्ता हुए टूटा हुआ पैमान बने हम वही हैं जो तुम्हें देख के अंजान बने चंद यादें मिरी ज़ंजीर-ए-शब-ओ-रोज़ बनीं चंद लम्हे मिरे खोए हुए औसान बने वो भी क्या फ़स्ल थी क्या शो'ला-ए-ख़िर्मन था बुलंद वो भी क्या दिन थे कि दामन से गरेबान बने इन की दूरी का भी एहसाँ है मिरी साँसों पर मुझ से इस तरह वो बिछड़े कि निगहबान बने अहल-ए-साहिल से नदामत सी नदामत है कि हम एक कश्ती-ए-तह-ए-आब का सामान बने हाए क्या आस थी क्या क्या न तुम्हें बनना था तुम बने भी तो मिरे दर्द की पहचान बने घर सजाना तो कुजा 'शाज़' लुटा भी न सकूँ इन से शिकवा है कि वो क्यूँ मिरे मेहमान बने