दिमाग़ अर्श पे है ख़ुद ज़मीं पे चलते हैं सफ़र गुमान का है और यक़ीं पे चलते हैं हमारे क़ाफ़िला-सलारों के इरादे क्या चले तो हाँ पे हैं लेकिन नहीं पे चलते हैं न जाने कौन सा नश्शा है उन पे छाया हुआ क़दम कहीं पे हैं पड़ते कहीं पे चलते हैं बना के उन को अगर छोड़ दो तो गिर जाएँ मकाँ नए कि पुराने मकीं पे चलते हैं जहाँ तुम्हारा है तुम को किसी का डर क्या है तमाम तीर जहाँ के हमीं पे चलते हैं