अपना हर उज़्व चश्म-ए-बीना है इस क़दर इंतिज़ार तेरा है जो है महबूब तेरा शैदा है यूसुफ़ आगे तिरी ज़ुलेख़ा है एक मह-रू बग़ल में सोता है आसमाँ पर दिमाग़ अपना है ख़ाक में जो मिला दिया मुझ को आसमाँ ने ज़मीं को सौंपा है किस ने चेहरे से बाल सरकाए शाम को सुब्ह आश्कारा है उस्तुख़्वाँ तक कभी गुज़र न किया मेरे हक़ में हुमा भी अन्क़ा है तेरे क़दमों पे क्यूँ न क़ैस गिरे नक़्श-ए-पा रश्क-ए-रू-ए-लैला है इन दिनों ऐ मसीह-ए-दम तुझ पर दम निकलता है दम निकलता है ताैलूँ उस सीम-तन को नज़रों में ये मिरा जिस्म-ए-ज़ार काँटा है हुस्न-ए-ख़ूबाँ हिलाल-ओ-बद्र की तरह कभी कम है कभी ज़ियादा है उस बयाबाँ में ले गई वहशत माह-ए-नौ जिस का एक काँटा है दिल में रहता है उस कमर का ख़याल क्या ये अन्क़ा का आशियाना है आओ आँखों में एक दम ठहरो पुतलियों का यहाँ तमाशा है कफ़-ए-पा भी न हम को दिखलाए बरहमन हाथ देख जाता है यार नाम-ए-ख़ुदा है कश्ती में नाख़ुदा आज पार बेड़ा है तेरा नक़्श-ए-क़दम ज़मीं पे नहीं आसमाँ पर कोई सितारा है हम से तुम दुश्मनी लगे करने दोस्ती अब नसीब-ए-आदा है कह रहे हैं शब-ए-फ़िराक़ में हम आज किस को उमीद-ए-फ़र्दा है ख़ार चुभ कर जो टूटता है कभी आबला फूट फूट रोता है आँखें नर्गिस हैं रुख़ है गुल क़द सर्व तू तो ऐ गुल चमन सरापा है काम पोशाक से नहीं हम को ऐब-पोशी हमारा शेवा है दे सुलैमाँ की उस परी को क़सम इस तरह शीशे में उतारा है ज़ुल्फ़ ने नक़्द-ए-दिल किए हैं जम्अ' अब तो ये साँप कोड़याला है पहुँचे हैं गोर के किनारे हम हम से अब तक तुम्हें किनारा है जुर्म 'गोया' के बख़्शवा देना या-मोहम्मद फ़क़ीर तेरा है