दिमाग़ क़ल्ब-ओ-कलाम मंज़र वो सर से पा तक तमाम मंज़र वो ज़ुल्फ़-ए-शब-रंग ख़्वाब-आलम लहू रुलाएगा शाम मंज़र तिरी ख़मोशी ग़ुबार ऐसी हमारा हुस्न-ए-कलाम मंज़र लबों के याक़ूत की चमक से चमक उठे हैं तमाम मंज़र ज़मीन मेहवर से हट गई है बदल चुका है मक़ाम मंज़र नई ग़ज़ल पर हैं सब की नज़रें नए दिखाओ 'निज़ाम' मंज़र