कटता है वक़्त कैसे बता दूँ जनाब का क़िस्सा सुनाया करते हैं अहद-ए-शबाब का ऐ मौला तू रहीम है ये जानता हूँ मैं रक्खा है यूँ ही पेच हिसाब-ओ-किताब का तुम आ गए ख़ुशी मिली आँसू ठहर गए गुज़रा कठिन ज़माना मिरे इज़्तिराब का तारों के दरमियान है जो इम्तियाज़-ए-चाँद दर्जा है गुल्सिताँ में वही तो गुलाब का मलमल का इस्ति'माल बजा है मगर ये क्या चर्चा है अंजुमन में अभी तक नक़ाब का इतनी ख़ता थी 'नज़्र' तुम्हीं सर-निगूँ न थे डोला गुज़र रहा था जो इज़्ज़त-मआब का