दिन ढला शब हुई चराग़ जले बज़्म-ए-रिंदाँ में फिर अयाग़ जले दफ़अ'तन आँधियों ने रुख़ बदला ना-गहाँ आरज़ू के बाग़ जले आस डूबी तो दिल हुआ रौशन बुझ गया दिल तो दिल के दाग़ जले जल-बुझे जुस्तुजू के परवाने मुस्तक़िल मंज़िल-ए-सुराग़ जले गाह मसरूफ़ियत सुलग उट्ठे गाह तन्हाई ओ फ़राग़ जले आँखें करती हैं शबनम-अफ़्शानी जब तिरी याद में दिमाग़ जले उन का चेहरा तह-ए-नक़ाब 'अख़्तर' जैसे पर्दे में इक चराग़ जले