दिन है बे-कैफ़ बे-गुनाहों सा ना-कुशादा शराब-गाहों सा कुछ फ़क़ीराना बे-नियाज़ी भी कुछ मिज़ाज अपना बादशाहों सा दिल दर-ए-मै-कदा सा वा सब पर घर भी रखते हैं ख़ानक़ाहों सा सब पे खुलते नहीं मगर मिरे शेर हाल है कुछ तिरी निगाहों सा आ गया है बयान में क्यूँकर पेच-ओ-ख़म सारा तेरी राहों सा कुछ नफ़स में शराब की सी महक कुछ हवा में नशा गुनाहों सा उजली उजली पहाड़ियों पर 'ज़ेब' रंग उतरा है जल्वा-गाहों सा