दिन हुआ जैसे रौशनी ही नहीं चाँद निकला तो चाँदनी ही नहीं बीच जंगल में राह भोली थी लौट कर घर कभी गई ही नहीं हाल और माज़ी एक जैसे हैं वक़्त से मेरी दोस्ती ही नहीं मेरी आँखों को ले उड़ा बादल ऐसी बारिश हुई थमी ही नहीं बे-सहारा थकन है और मैं हूँ मंज़िल-ए-इश्क़ तक चली ही नहीं कुछ सितारों ने ख़ुद-कुशी कर ली कुछ सितारों में साँस थी ही नहीं ये 'सहर' आइने में कौन है अब मेरी सूरत मुझे मिली ही नहीं