हर एक बात किसी बात पर है गोया तंज़ मिरी ज़बान मिरी ज़ात पर है गोया तंज़ न वो ख़ुलूस की गर्मी न वालेहाना-पन किसी से मिलना मुलाक़ात पर है गोया तंज़ निगाह-ए-आदम-ए-ख़ाकी की वुसअतों का बयाँ तमाम अर्ज़-ओ-समावात पर है गोया तंज़ अजीब शख़्स है उस की बस एक ख़ामोशी ज़माने भर की ख़ुराफ़ात पर है गोया तंज़ किसी के हाथ पे बैअत न कर सका मैं 'नदीम' सो अपना हाथ मिरे हात पर है गोया तंज़