दिन जुदाई का दिया वस्ल की शब के बदले लेने थे ऐ फ़लक-ए-पीर ये कब के बदले राहत-ए-वस्ल किसी को तो किसी को ग़म-ए-हिज्र सब्र ख़ालिक़ ने दिया है मुझे सब के बदले इतनी सी बात पे बिगड़े ही चले जाते हो ले लो तुम बोसा-ए-लब बोसा-ए-लब के बदले फ़ुर्क़त-ए-यार में जीने के उठाए इल्ज़ाम मौत आई न मुझे हिज्र की शब के बदले आज अग़्यार 'वफ़ा' से न उलझ बैठे हों तौर आते हैं नज़र बज़्म-ए-तरब के बदले