वो मेरे शहर में आया हुआ है कड़कती धूप में साया हुआ है तुम्हारे प्यार में टूटा हुआ दिल किसी के हुस्न पे आया हुआ है दिल-ए-बर्बाद को तेरे सबब से नई उल्फ़त में उलझाया हुआ है मोहब्बत ने मिरे से तुंद-ख़ू को सर-ए-बाज़ार खिंचवाया हुआ है मुझे मिलने को उस ने तंग कुर्ता ब-तौर-ए-ख़ास सिलवाया हुआ है नदामत सख़्त है पर है ख़ुशी भी उसे ख़ल्वत में बुलवाया हुआ है