दिन को कार-ए-दराज़-ए-दहर रहा रात ख़्वाबों की वादियों में कटी चाँद ख़ामोश जा रहा था कहीं हम ने भी उस से कोई बात न की साअत-ए-दीद तेरी उम्र ही क्या अभी आई न थी कि बीत गई बर्ग-ए-आवारा से कोई पूछे बू-ए-गुल किस की जुस्तुजू में गई किस का नग़्मा है दिल की धड़कन में किस की आवाज़-ए-पा सुकूत बनी