दिन वस्ल के रंज-ए-शब-ए-ग़म भूल गए हैं ये ख़ुश हैं कि अपने तईं हम भूल गए हैं उन वा'दा-फ़रोशों से क्या कीजिए शिकवा खा खा के मिरे सर की क़सम भूल गए हैं जिस दिन से गए अपनी ख़बर तक नहीं भेजी शायद हमें यारान-ए-अ'दम भूल गए हैं काटी हैं महीनों ही तिरी याद में रातें ग़फ़लत में तुझे गर कोई दम भूल गए हैं या राहत-ओ-रंज अब है मुसावात हमीं को या आप ही कुछ तर्ज़-ए-सितम भूल गए हैं कुछ होश ठिकाने हों तो लें नाम किसी का हम दे के कहीं दिल की रक़म भूल गए हैं गो बरसर-ए-परख़ाश है 'मसरूर' से तू अब क्या उस को तिरे लुत्फ़-ओ-करम भूल गए हैं