दीवानगी-ए-शौक़ का सामाँ सजा के ला नादाँ गुहर कोई सर-ए-मिज़्गाँ सजा के ला फ़नकार तू अगर है तो फ़न का दिखा कमाल तस्वीर-ए-यार ता-हद-ए-इम्काँ सजा के ला गुलशन पे है ख़िज़ाँ का तसल्लुत तो ग़म नहीं दिल में फ़रेब-ए-हुस्न-ए-बहाराँ सजा के ला दे माहताब बन के अंधेरों को रौशनी मुर्दा दिलों के वास्ते दरमाँ सजा के ला हम आज तेरी क़ैद से आज़ाद हो गए ऐ ज़िंदगी अब और ही ज़िंदाँ सजा के ला फिर ज़ख़्म मुंदमिल हुए जाते हैं ऐ नदीम तू मेरा मेहरबाँ है नमक-दाँ सजा के ला आलम का जो 'शफ़ीक़' है रहमत है सर-बसर उस का ख़याल नज़्द-ए-राग-ए-जाँ सजा के ला