गाँव की आँख से बस्ती की नज़र से देखा एक ही रंग है दुनिया को जिधर से देखा हम से ऐ हुस्न अदा कब तिरा हक़ हो पाया आँख भर तुझ को बुज़ुर्गों के न डर से देखा अपनी बाँहों की तरह मुझ को लगीं सब शाख़ें चाँद उलझा हुआ जिस रात शजर से देखा हम किसी जंग में शामिल न हुए बस हम ने हर तमाशे को फ़क़त राहगुज़र से देखा हर चमकते हुए मंज़र से रहे हम नाराज़ सारे चेहरों को सदा दीदा-ए-तर से देखा फूल से बच्चों के शानों पे थे भारी बस्ते हम ने स्कूल को दुश्मन की नज़र से देखा