दीवाना हो के नाज़ किसी के उठाए कौन है दिल-लगी ज़रूर मगर दिल लगाए कौन ख़सलत जफ़ा-शिआ'र है उन की जताए कौन जो आज़मा लिया है उसे आज़माए कौन साक़ी नहीं तो होश में रिंदों को लाए कौन जाम-ओ-सुबू है सामने लेकिन पिलाए कौन माना हरम के साए में यकसर बहिश्त है बज़्म-ए-बुताँ को छोड़ के जाए तो जाए कौन उल्फ़त की आग बैठे-बिठाए लगा तो ली अब देखना ये है कि लगी को बुझाए कौन ख़ामोशियाँ नसीब-ए-नज़र पर मुहीत हैं ग़म-आश्ना हूँ गीत मोहब्बत का गाए कौन है रोज़ इम्तिहान जहाँ के नसीब का क्या जानिए तुम्हारी नज़र में समाए कौन इक चश्म-ए-मय-फ़रोश है मसरूफ़-ए-इंतिख़ाब ऐसे में ग़म-नसीब को ख़ातिर में लाए कौन हर यास में रहे हो मिरे दिल का आसरा है दर्द का शरीक तुम्हारे सिवाए कौन फिर ताज़ा हो रहे हैं ग़म-ए-इश्क़ के निशाँ छुपता नहीं ये राज़ तो उस को छुपाए कौन हिकमत ज़रूर है पस-ए-पर्दा ब-फ़िक्र-ए-'शाद' होता नहीं जो सामने हो कर ख़ुदा-ए-कौन