दीवाना-वार उन से मुलाक़ात हो कभी लब-बस्ता हम कहेंगे अगर बात हो कभी आँखें हों बंद और निगाहों में वो रहें आँगन में आफ़्ताब हो वो रात हो कभी इस बहर-ए-बे-कनार में सहरा हैं मौजज़न दिल में बहार लाए वो बरसात हो कभी तोहफ़े में जान पेश करेंगे हुज़ूर हम शायान-ए-शान आप के सौग़ात हो कभी करते रहे हैं आप हमारी नफ़ी सदा बदलें मुआमलात गर इसबात हो कभी हम आज इस उमीद पे बाज़ी लगाएँगे जौर-ओ-सितम को आप की शह-मात हो कभी गरचे तवक़्क़ुआ'त 'हिदायत' हैं बे-समर शायद वफ़ाओं की भी मुकाफ़ात हो कभी