दीवानगी की तुझ को भी ऐ काश ख़ू मिले मैं चार-सू दिखाई दूँ तू चार-सू मिले ये इंतिहा-ए-इश्क़ है या इर्तिक़ा-ए-हुस्न हर शय में मेरा रंग मिले तेरी बू मिले जोश-ए-हया से पाक हुई आरज़ू-ए-दिल ख़ल्वत में दो जवान बदन बा-वज़ू मिले दो चार बातें और मुकम्मल ख़मोशियाँ हम दोनों यूँ तो देर तलक रू-ब-रू मिले वल्लाह तू तो फूल है पहली बहार का वो कितना ख़ुश-नसीब है जिस को कि तू मिले यूँ तो तिरे ख़ुद अपने ही अरमान कम नहीं ऐ काश तेरे दिल को मिरी आरज़ू मिले