दीवार अब कहीं न कोई दर दिखाई दे चारों तरफ़ बस एक समुंदर दिखाई दे घर पर नज़र करूँ तो बयाबान सा लगे और दश्त-ए-बे-कनार मुझे घर दिखाई दे ख़्वाबों के दरमियान है मुद्दत से एक जंग मैदान-ए-कार-ज़ार न लश्कर दिखाई दे ये क्या कि फिर भी जिस्म है अपना लहू-लुहान आता हुआ कहीं से न पत्थर दिखाई दे हर शाम ज़िंदगी का नया ख़्वाब ले के आए हर सुब्ह अपनी मौत का मंज़र दिखाई दे इस तरह पढ़ रहे हैं वो तहरीर हाथ की हाथों में जैसे मेरा मुक़द्दर दिखाई दे तीर ओ कमान आप भी 'मोहसिन' सँभालिये जब दोस्ती की आड़ में ख़ंजर दिखाई दे