दीवार फलाँग कर आया By Ghazal << जिस्म-ए-बे-सर कोई बिस्मिल... किस से अहवाल कहूँ अपना मै... >> दीवार फलाँग कर आया सूरज का आधा साया नागिन ने पलट पलट कर देर तलक मुझ को डराया था कोई और खंडर में जिस ने वो चराग़ जलाया कल शब पागल हो कर वो फिर मेरे तन में समाया उस के तन की रेत पे क्या मैं ने कुछ ख़ाका बनाया Share on: