दो रोज़ में शबाब का आलम गुज़र गया गुलशन में एक फूल खिला और बिखर गया उड़ने लगी है राह-ए-तमन्ना में धूल सी ये किस के साथ मौसम-ए-अरमाँ गुज़र गया दिल में किसी भी वहम-ओ-गुमाँ का गुज़र नहीं मुँह फेरना किसी का बड़ा काम कर गया अब चाहता हूँ लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-फ़िराक़-ए-यार दिल तो हर एक ऐश-ए-ज़माना से भर गया बीमार-ए-ग़म ने तोड़ दिया दम ख़ुशी के साथ उन का ख़याल मौत भी आसान कर गया 'नाशाद' आ गया दिल-ए-बेताब को क़रार इक आश्ना भी मेरी वफ़ा से मुकर गया