दोबारा होने लगे मंज़रों में मंज़र गुम कहाँ है तू कि है मौजूद गुम मयस्सर गुम अजल-गिरफ़्ता हैं हम आ इधर रुदाली आ जो नौहागर थे हमारे हुए वो यकसर गुम न जल-परी ही वो आई न बादबान खुला और अपने-आप में देखा गया समुंदर गुम मैं तेरे ध्यान के दामन को थाम कर निकला वगर्ना देखा गया ख़िज़्र गुम सिकंदर गुम ये कौन ले गया पानी हमारी झीलों से परिंदे ढूँड रहे हैं कहाँ है कींझर गुम