क़ुबूल कीजिए इंकार का मक़ाम नहीं ये जाम-ए-मय है परी-वस्ल का पयाम नहीं अजीब है ये सरापा कमर का नाम नहीं कुछ उन की बे-दहनी में मुझे कलाम नहीं है कौन शैख़-ओ-बरहमन जो दिल से राम नहीं तुम्हारा दैर से कब ता-हरम ख़िराम नहीं लिया जो मोल ज़ुलेख़ा ने माह-ए-कनआँ को कहा जमाल ने साहब हूँ मैं ग़ुलाम नहीं बहक न जाऊँ जो पी जाऊँ बहर-ए-मय साक़ी सवारी हेच है जब हाथ में लगाम नहीं उठा ले हाथ जफ़ा-ओ-सितम से ऐ ज़ालिम ख़ुदा के पास भी इस से बड़ा सलाम नहीं सफ़ें हैं जाम की मय-ख़ाना अपनी मस्जिद है ब-जुज़ शराब की बोतल के याँ इमाम नहीं जो एक बोसा-ए-लब लूँ हज़ार शुक्र करूँ तिरे रक़ीब सा मैं भी नमक-हराम नहीं मैं आप करती हूँ ख़िदमत कहा ज़ुलेख़ा ने तिरी ग़ुलामी के लाएक़ कोई ग़ुलाम नहीं वज़ीफ़ा है तिरे हुस्न-ओ-अदा-ओ-ओ-ग़म्ज़े का किसी बशर की ज़बाँ पर किसी का नाम नहीं मिरे गुनाहों को और किस से बख़्शवाऊँ मैं शफ़ीअ' जुज़ तिरे या सय्यद-ए-अनाम नहीं फ़िराक़ में नहीं पीता मैं आब तक मय क्या इलाही बंदा तिरा शारिब-ए-मुदाम नहीं चले न जाए वो घर को उसी बहाने से सुना दो मेरे जनाज़े को इज़्न-ए-आम नहीं हुजूम-ओ-यास-ओ-अलम दिल को मेरे घेरे हैं कि मुंतज़िर है जमाअत मगर इमाम नहीं कब आने पाता है रिंदों में नाम ज़ाहिद का हमारी बज़्म में बोले कबाब-ए-ख़ाम नहीं न फूल जाओ 'नसीम' उन के फूल फेंके पर गुलों की मेहर-ओ-मोहब्बत को कुछ क़याम नहीं