दोनों अपने काम के माहिर दोनों बड़े ज़हीन साँप हमेशा फन लहराए और सपेरा बीन गुर्ग वहाँ कोई सर नहीं करता आहू पर बंदूक़ उस बस्ती को जंगल कहना जंगल की तौहीन सोख़्तगाँ की बज़्म-ए-सुख़न में सद्र-ए-नशीं आसेब चीख़ों के सद ग़ज़लों पर सन्नाटों की तहसीन फ़ित्ना-ए-शब ने ख़त्म किया सब आँखों का आज़ार सारे ख़्वाब हक़ीक़त बन गए सारे वहम यक़ीन हम भी पत्थर तुम भी पत्थर सब पत्थर टकराओ हम भी टूटें तुम भी टूटो सब टूटें आमीन