दोनों हैं उन के हिज्र का हासिल लिए हुए दिल को है दर्द दर्द को है दिल लिए हुए देखा ख़ुदा पे छोड़ के कश्ती को नाख़ुदा जैसे ख़ुद आ गया कोई साहिल लिए हुए देखो हमारे सब्र की हिम्मत न टूट जाए तुम रात दिन सताओ मगर दिल लिए हुए वो शब भी याद है कि मैं पहुँचा था बज़्म में और तुम उठे थे रौनक़-ए-महफ़िल लिए हुए अपनी ज़रूरियात हैं अपनी ज़रूरियात आना पड़ा तुम्हें तलब-ए-दिल लिए हुए बैठा जो दिल तो चाँद दिखा कर कहा 'क़मर' वो सामने चराग़ है मंज़िल लिए हुए