दोनों जहान दे के वो समझे ये ख़ुश रहा By Ghazal << तिरी तलाश में है साएबान भ... जाते है ख़ानक़ाह से वाइज़... >> दोनों जहान दे के वो समझे ये ख़ुश रहा याँ आ पड़ी ये शर्म कि तकरार क्या करें थक थक के हर मक़ाम पे दो चार रह गए तेरा पता न पाएँ तो नाचार क्या करें क्या शम्अ' के नहीं हैं हवा-ख़्वाह बज़्म में हो ग़म ही जाँ-गुदाज़ तो ग़म-ख़्वार क्या करें Share on: