जाते है ख़ानक़ाह से वाइज़ सलाम है हम दैर से चले सनम अब राम राम है सूरत वो साँवली कि कनहय्या ग़ुलाम है मेरे सनम से ख़ूब-तर अल्लाह का नाम है दर-पेश है वो मंज़िल-ए-ना-ताक़ती हमें उठ्ठे जो हम-सफ़र है जो बैठे मक़ाम है सय्याद ही बहार के पर्दे में बुलबुलो हर ग़ुंचा है क़फ़स रग-ए-गुल तार-ए-राम है क्यूँ कर न मेरी याद फ़रामोश हो उसे समझा है यार नंग जिसे मेरा नाम है मेरा लहू चटाएगा जब तक न तेग़ को क़ातिल को दहने हाथ का खाना हराम है साक़ी से हो जो दिल-शिकनी भी तो लुत्फ़ है टूटा जो शीशा मेरी बग़ल का तो जाम है फ़स्ल-ए-बहार बात की बात इस चमन में है आवाज़-ए-ग़ुंचा रुख़्सत-ए-गुल का पयाम है मस्ती टपक रही है यहाँ बाल बाल से तन में लहू नहीं ये मय-ए-लाल-फ़ाम है तहरीर-ए-हाल की किसे ताक़त है नामा-बर है जान होंटों पर ये ज़बानी पयाम है वो माह-रू छुपा है महाक़-ए-हिजाब में आशिक़ के ज़िंदगी का महीना तमाम है समझे रहें बहुत मिरे कम-माएगी हरीफ़ क़तरा वो हूँ कि आज मिरा 'बहर' नाम है