दोस्त बहुत रहे मगर यार नहीं बना कोई या'नी मैं चल पड़ा तो दीवार नहीं बना कोई इक तो ये दुख कि कोई हक़दार ही बन गया तिरा इस पे सितम ये है कि हक़दार नहीं बना कोई फूल बिका रहे हैं त्रिशूल बिकाने वाले भी जब से वो शहर आया हथियार नहीं बना कोई इश्क़-शनास लोग थे सारे उदास लोग थे सो मिरे शहर से अदाकार नहीं बना कोई शो'बदा-बाज़ अब के मायूस पलट गया है 'राज़' या'नी कि बेवक़ूफ़ इस बार नहीं बना कोई