दोस्तों के दरमियाँ भी हम को तन्हा देखते तुम कभी आते सर-ए-महफ़िल तमाशा देखते आइना-ख़ानों में क्या रक्खा है हैरत के सिवा कूचा-ओ-बाज़ार में ख़ून-ए-मसीहा देखते मौत को भी हम बना लेते मता-ए-ज़िंदगी क़त्ल यूँ होते कि सब दाना ओ बीना देखते क़ैस की मानिंद क्यूँ तस्वीर बन कर रह गए पर्दा-ए-महमिल उठा कर रू-ए-लैला देखते में तुम्हारे हुस्न का बे-साख़्ता इज़हार हूँ अपने आईने में मेरा भी सरापा देखते ढूँडने निकले हैं तुझ को मावरा-ए-आब-ओ-गिल उम्र गुज़री यम-ब-यम सहरा-ब-सहरा देखते क्या ये कम है फ़र्श से ता-अर्श हो आए 'जमील' चार दिन की ज़िंदगी में और क्या क्या देखते