इश्क़ बहुत ख़ामोश है 'अह्मर' बारे कुछ हुशियार करें ख़ून-ए-जिगर के छींटे दे कर जश्न-ए-गुल-ओ-गुलज़ार करें उस का शिकवा उस के ही आगे कैसे हम नाचार करें सूरत जिस की देखते ही बस जी ये चाहे प्यार करें रज़्म-गह-ए-उश्शाक़ है ये सरकार यहाँ कुछ कार करें सुरमे का दुम्बाला दे कर नैनों को तलवार करें ऐसे ज़ुल्म-शिआरों से हम क्यूँकर रह हमवार करें दिल की जो पूछें बात न इक दिन दिल पर सौ सौ वार करें मुद्दत से इक आस लगी है हम भी कभी दीदार करें एक झलक की बात ही क्या है आप अगर उपकार करें दिल को यही इक धुन है लगी हर सुब्ह-ओ-मसा हर आठ पहर नाम जपें हर लहज़ा उन का ज़िक्र करें अज़़कार करें शेवा अर्ज़-गुज़ारी का तो इश्क़ में लाज़िम ठहरा है ऐसे पर नादान नहीं हम उन से और तकरार करें दिल पर जो कुछ बीत रही है ख़ैर यही है दिल में रहे 'अह्मर' ये वो राज़ नहीं कि महफ़िल में बिस्तार करें