दूँ मैं तस्कीन रूह को अपनी मुझ को कोई ख़बर तो दो अपनी मुस्कुराना बना है तेरे लिए मस्तियों में मगन रहो अपनी जो मुनाफ़िक़ हैं उन से दूर रहो धड़कनों की सदा सुनो अपनी तुम को इक और भी नसीहत है सब की सुन लो मगर करो अपनी अपना रोना लगा ही रहना है तुम सुनाओ ना कुछ कहो अपनी