हर-क़दम मरहला-ए-सब्र-ओ-रज़ा हो जैसे ज़िंदगी मारका-ए-कर्ब-ओ-बला हो जैसे यूँ गुज़र जाते हैं दुनिया से अदम के राही रह में नक़्श-ए-क़दम-ए-राह-नुमा हो जैसे चुप हुए जाते हैं यूँ देख के सूरत मेरी हाल मेरा मिरे चेहरे पे लिखा हो जैसे इस तरह काट रहा हूँ मैं शब-ओ-रोज़-ए-हयात हर-नफ़स अपने लिए एक सज़ा हो जैसे दश्त में जलती हैं ता-हद्द-ए-नज़र यूँ शमएँ सर-ए-हर-ख़ार पे ख़ून-ए-शोहदा हो जैसे रिंद झिझके तो बला-नोशों ने महसूस किया मय नहीं जाम में ख़ून-ए-ग़ुरबा हो जैसे यूँ शफ़क़-रंग सी है आज गुलिस्ताँ की ज़मीं बरहना-पा कोई काँटों पे चला हो जैसे हर ज़बाँ पर मिरे मिटने के हैं चर्चे लेकिन उन के नज़दीक तो कुछ भी न हुआ हो जैसे आज इस अंदाज़ से आई मुझे हिचकी 'आजिज़' भूलने वाले ने फिर याद किया हो जैसे