दुआ ही वज्ह-ए-करामात थोड़ी होती है ग़ज़ब की धूप में बरसात थोड़ी होती है रह-ए-वफ़ा की रिवायत है सर झुका रखना बिसात-ए-इश्क़ पे ये मात थोड़ी होती है जो अपना नाम सफ़-ए-मो'तबर में लिखते हैं ख़ुद उन से अपनी मुलाक़ात थोड़ी होती है बहुत से राज़ दिलों के दिलों में रहते हैं उसे बताने की हर बात थोड़ी होती है दिल ओ नज़र में जो बस जाए दिल-रुबा ठहरे कि दिलरुबाई कोई ज़ात थोड़ी होती है 'हिजाब' अहल-ए-जुनूँ में शुमार होने की असास इज़्ज़त-ए-सादात थोड़ी होती है