दुख-दर्द मुसीबत ग़म-ओ-आलाम नहीं है किस दिल में भला फ़स्ल-ए-ख़ूँ-आशाम नहीं है जारी है अभी खेल वही ज़ुल्म-ओ-सितम का आग़ाज़ ही आग़ाज़ है अंजाम नहीं है होती है शब-ओ-रोज़ ही रिश्तों की तिजारत दुनिया में मोहब्बत का कहीं नाम नहीं है औरों के लिए सुब्ह तिरे लुत्फ़-ओ-करम की क्या हम पे इनायत की कोई शाम नहीं है क़ातिल भी हैं महफ़ूज़ सियासत की बदौलत अब उन पे किसी क़त्ल का इल्ज़ाम नहीं है चेहरे को छुपाते हैं यहाँ लोग 'शराफ़त' चेहरे को दिखाने का चलन आम नहीं है