दुख फ़साना नहीं कि तुझ से कहें दिल भी माना नहीं कि तुझ से कहें आज तक अपनी बेकली का सबब ख़ुद भी जाना नहीं कि तुझ से कहें बे-तरह हाल-ए-दिल है और तुझ से दोस्ताना नहीं कि तुझ से कहें एक तू हर्फ़-ए-आश्ना था मगर अब ज़माना नहीं कि तुझ से कहें क़ासिदा हम फ़क़ीर लोगों का इक ठिकाना नहीं कि तुझ से कहें ऐ ख़ुदा दर्द-ए-दिल है बख़्शिश-ए-दोस्त आब-ओ-दाना नहीं कि तुझ से कहें अब तो अपना भी उस गली में 'फ़राज़' आना जाना नहीं कि तुझ से कहें