जब तक तअ'ल्लुक़ात हमारे बने रहे हम एक दूसरे के सहारे बने रहे जब तक खिले हुए थे दिलों में ग़रज़ के फूल तुम भी हमारे हम भी तुम्हारे बने रहे ख़्वाहिश के ओर छोर से वाक़िफ़ थे हम मगर दरिया के आर-पार किनारे बने रहे अरमान हाँपते रहे दो खिड़कियों के बीच आँखों के दरमियान इशारे बने रहे ख़ुश्बू बिखेरती रही बिस्तर पे चाँदनी जज़्बात सारी रात शरारे बने रहे 'परवेज़' जब तलक था मोहब्बत पे इख़्तियार हम भी तुम्हारे तुम भी हमारे बने रहे