दुख-दर्द मिरे पास भी जौहर की तरह हैं ज़ुल्मत में वो क़िंदील-ए-मुनव्वर की तरह हैं फ़ुटपाथ पे रातों को मज़ा मिलता है घर का हम दिन के उजाले में तो बे-घर की तरह हैं ठहरे हैं मगर आगे है चलने का इरादा हम लोग यहाँ मील-के-पत्थर की तरह हैं हर मौज पे हिम्मत मिरी पतवार है लेकिन उम्मीद की आँखें तो समुंदर की तरह हैं चाहेंगे तो क़दमों पे ये दुनिया भी झुकेगी हम अपने ही हाथों में मुक़द्दर की तरह हैं सड़कों पे निकल आएँ तो आवारा न समझो हम सीना-ए-सहरा में किसी घर की तरह हैं