अभी तो करना पड़ेगा सफ़र दोबारा मुझे अभी करें नहीं आराम का इशारा मुझे लहू में आएगा तूफ़ान-ए-तुंद रात-ब-रात करेगी मौज-ए-बला-ख़ेज़ पारा-पारा मुझे बुझा नहीं मिरे अंदर का आफ़्ताब अभी जला के ख़ाक करेगा यही शरारा मुझे उतार फेंकता मैं भी ये तार-तार बदन असीर-ए-ख़ाक हूँ करना पड़ा गुज़ारा मुझे उड़े वो गर्द कि मैं चार-सू बिखर जाऊँ ग़ुबार में नज़र आए न कोई चारा मुझे मिरे हुदूद में है मेरे आस-पास की धुँद रहा ये शहर तो इस का नहीं इजारा मुझे सहर हुई तो बहुत देर तक दिखाई दिया ग़ुरूब होती हुई रात का किनारा मुझे मिरी फ़ज़ा में है तरतीब-ए-काएनात कुछ और अजब नहीं जो तिरा चाँद है सितारा मुझे न छू सकूँ जिसे क्या उस का देखना भी 'ज़फ़र' भला लगा न कभी दूर का नज़ारा मुझे