दुखों के रूप बहुत और सुखों के ख़्वाब बहुत तिरा करम है बहुत पर मिरे अज़ाब बहुत तू कितना दूर भी है किस क़दर क़रीब भी है बड़ा है हिज्र का सहरा-ए-पुर-सराब बहुत हक़ीक़त-ए-शब-ए-हिज्राँ के राज़ खोए गए तवील दिन हैं बड़े रास्ते ख़राब बहुत चलेंगे कितना तिरे ग़म के साथ साथ क़दम शिकंजा-हा-ए-ज़माना हैं बे-हिसाब बहुत उतर गया है ख़ुमार-ए-शराब-ए-ज़ात कहीं हुए हैं गर्दिश-ए-दौराँ से फ़ैज़याब बहुत