दुनिया अजीब खेल तमाशा लगे मुझे हर आदमी हुजूम में तन्हा लगे मुझे गूँगे मुजाहिदों का ये ठहरा हुआ जुलूस परछाइयों का एक जज़ीरा लगे मुझे बाज़ार-ए-संग-ओ-ख़िश्त में सौ नाज़ुकी के साथ अपनी हयात काँच की गुड़िया लगे मुझे सूरज-मुखी की तरह बदलती है रुख़ हयात जब आफ़्ताब-ए-वक़्त उभरता लगे मुझे इस दर्जा मौज-ए-ख़ूँ है रगों में शरर-फ़िशाँ उम्र-ए-रवाँ तो आग का दरिया लगे मुझे पौ फूटते ही दूर निकल जाऊँगा 'सहर' संसार एक रैन-बसेरा लगे मुझे