दुनिया दुनिया सैर सफ़र थी शौक़ की राह तमाम हुई इस बस्ती में सुब्ह हुई थी इस बस्ती में शाम हुई कैसी लहर है सर्द हवा की सारे ठिठुरे बैठे हैं कल तक तो बस हम चुप चुप थे आज ख़मोशी आम हुई मौसम बदले दिल का सूरज दुख की घटा में डूब गया प्यार के लैल-ओ-नहार न पूछो शाम से पहले शाम हुई दर्द की बरखा टूट के बरसी फूट बहे पलकों के बंद इस बारिश में वज़-ए-वफ़ा की हर कोशिश नाकाम हुई हल्की सी इक लहर थी अब वो तूफ़ाँ बन कर उभरी है इक बे-नाम ख़लिश थी पहले अब वो तेरा नाम हुई तेरे सर पर रात की रानी महक महक कर फूल बनी मेरे सर में फूल की ख़ुश्बू शोरिश का पैग़ाम हुई छोटा सा वो दिल का टुकड़ा क्या क्या फ़सलें देता था हैफ़ क़िमार-ए-इश्क़ के कारन कैसी ज़मीं नीलाम हुई पहले तो इक साया उभरा फिर साया तस्वीर बना अब वो शक्ल मिरी दीवार पे गोया नक़्श-ए-दवाम हुई एक अमल के दो पहलू आवाज़-ए-सलासिल जज़्ब की चुप वो भी मेरे नाम हुई थी ये भी मेरे नाम हुई अहल-ए-हुनर की दुनिया-तलबी शौक़-ए-शहादत क्या करती इक तलवार थी अर्ज़-ए-हुनर की वो भी ज़ेब-ए-नियाम हुई 'बाक़र' तुम सय्यद-ज़ादे हो सर को उठाए फिरना क्या शौक़-ओ-तलब की हुज्जत-ए-आख़िर आख़िर-कार तमाम हुई