दुनिया-ए-इश्क में किसी क़ाबिल नहीं रहा जो दिल तिरी नज़र से गिरा दिल नहीं रहा ले जा रहा है शौक़ चला जा रहा हूँ मैं अब इम्तियाज़-ए-जादा-ओ-मंज़िल नहीं रहा तारीक हो गया है ज़माना निगाह में पहलू में जब से वो मह-ए-कामिल नहीं रहा क्यों मय-कशों पे उठती हैं दुनिया की उँगलियाँ ख़ुद शैख़ एहतिराम के क़ाबिल नहीं रहा अब क्यूँकर उन को ला'ल-ए-बदख़्शाँ कहे कोई जब दिल का ख़ून अश्कों में शामिल नहीं रहा ए'जाज़ मेरी चश्म-ए-हक़ीक़त-निगर का देख अब कोई पर्दा पर्दा-ए-हाइल नहीं रहा 'शैदा' कहाँ वो ऐश वो इशरत वो इम्बिसात महफ़िल में जब वो ज़ीनत-ए-महफ़िल नहीं रहा