दुनिया का हर सितम तो गवारा करे कोई किस दिल से आह तर्क-ए-तमन्ना करे कोई मौजों से और बढ़ता है एहसास-ए-तिश्नगी दरिया को किस निगाह से देखा करे कोई आँखों में कोई हुस्न की तस्वीर ही नहीं आईना किस ख़याल से देखा करे कोई देखा था उस को या कि फ़रेब-ए-नज़र था वो कब तक मज़ाक़-ए-दीद को रुस्वा करे कोई सीखी हैं किस से हुस्न ने नावक-निगाहियाँ अंदाज़-ए-दिलबरी भी सिखाया करे कोई फूलों में रंग और न ग़ुंचों पे है शबाब किस दिल से गुल्सिताँ का नज़ारा करे कोई हँसते हैं हाल-ए-ज़ार पे अहबाब ऐ 'नज़ीर' ग़म का हमारे काश मुदावा करे कोई