दुनिया के हर ख़याल से बेगाना कर दिया हुस्न-ख़याल-यार ने दीवाना कर दिया तू ने कमाल जल्वा-ए-जानाना कर दिया बुलबुल को फूल शम्अ' को परवाना कर दिया मशरब नहीं ये मेरा कि पूजूँ बुतों को मैं शौक़-ए-तलब ने दिल को सनम-ख़ाना कर दिया उन की निगाह-ए-मस्त के क़ुर्बान जाइए मेरे जुनूँ को हासिल-ए-मय-ख़ाना कर दिया ठुकराए या क़ुबूल करे उस की बात है हम ने तो पेश जान का नज़राना कर दिया तेरे ख़िराम-ए-नाज़ पे क़ुर्बान ज़िंदगी नक़्श-ए-क़दम को रौनक़-ए-वीराना कर दिया मैख़ाना-ए-अलस्त का वो रिंद हूँ 'फ़ना' जिस पर निगाह डाल दी मस्ताना कर दिया