आदमी हूँ देवता बनना नहीं मैं किसी से भी कभी रूठा नहीं सच का हामी तो रहा झूठा नहीं झूठ मेरे पास भी फटका नहीं हादसों से देख मैं टूटा नहीं मैं किसी से भी कभी जलता नहीं ख़ुशियाँ आईं तो कभी झूमा नहीं दुख मिले तो मैं कभी रोया नहीं ग़म मिले जो राह में सिस्का नहीं आँसुओं में देख मैं डूबा नहीं चाँद की अपनी कोई सीमा नहीं चाँद की महिमा कभी ढलता नहीं दोस्ती 'आज़र' तिरी भूला नहीं दोस्तों ने क्या दिया सोचा नहीं