दुनिया को देखिए ज़रा आँखें तो खोलिए सूरज चढ़ा है सर पे बड़ी देर सो लिए सारी मसर्रतें तिरी ख़ुशियों पे वार दीं जितने भी ग़म मिले तिरे ग़म में समो लिए हम को न-जाने क्या हुआ फूलों को देख कर हाथों में हम ने जान के काँटे चुभो लिए मजबूरियाँ कहें कि इसे सादगी कहें जिस ने भी हँस के बात की हम साथ हो लिए रू-ए-ख़िताब है किसी नाज़ुक-मिज़ाज से चेहरे पे हाल लिखिए निगाहों से बोलिए सीपी खुली रहेगी जो मोती निकल गए आँखों की सीपियों से जवाहर न रोलिए ताज़ा रखा है ज़ेहन में कर्ब-ए-शिकस्तगी जब कुछ न बन पड़ा तो कहीं छुप के रो लिए