दुनिया को वलवला दिल-ए-नाशाद से हुआ ये तूल उस खुलासा-ए-ईजाद से हुआ फ़स्ल-ए-जुनूँ में सीना-ओ-नाख़ुन को मेरे देख क्या बे-सुतूँ पे तेशा-फ़रहाद से हुआ रहमत ने बढ़ के सर्द जहन्नम को कर दिया कैसा क़ुसूर ये दिल-ए-नाशाद से हुआ ख़ुश हूँ मैं वक़्त-ए-नज़अ' ख़ुशा लज़्ज़त-ए-फ़राग़ जो कुछ हुआ वो आप के इरशाद से हुआ ये है हक़ीक़त-ए-अदम-ओ-आलम-ए-वुजूद वो ख़ामुशी से ये मिरी फ़रियाद से हुआ ना-वाक़िफ़-ए-रुसूम मोहब्बत है कोई चीज़ इंसाँ 'अज़ीज़' शेवा-ए-फ़र्याद से हुआ