दुनिया में कोई दिल का ख़रीदार न पाया सब देखे दिल-आज़ार ही दिलदार न पाया कब ग़ैर को हम-रह तिरे ऐ यार न देखा तुझ गुल को कभी हम ने तो बे-ख़ार न पाया तुझ रुख़ से न बुर्क़ा उठा ऐ ग़ैरत-ए-ख़ुर्शीद ज़र्रा तिरा मुश्ताक़ों ने दीदार न पाया हम सर ही पटकते रहे दरवाज़े के बाहर पर घर में तिरे आना कभी बार न पाया किस से कहूँ अपना ग़म-ए-दिल आह अज़ीज़ाँ दुनिया में कोई मूनिस-ओ-ग़म-ख़्वार न पाया हर तरह गले पड़ के दिया हम ने तुझे दिल जब तुझ सा यहाँ कोई तरह-दार न पाया देख उस की हुई ऐसी ज़े-ख़ुद-रफ़तगी तुझ को कल आप में मैं तुझ को 'जहाँदार' न पाया