जुनून-ए-इश्क़ जिसे सर-फिरा बना देगा पहाड़ काट के वो रास्ता बना देगा ख़ुमार-ए-हुस्न सलामत रखे ख़ुदा उस का जहाँ वो चाहे वहाँ मै-कदा बना देगा उसी के क़ब्ज़ा-ए-क़ुदरत में हैं सभी के दिल वो जिस को चाहे उसे पारसा बना देगा घिरा हुआ मुझे देखेगा जब नदामत में वो मेरी आह को हर्फ़-ए-दुआ बना देगा मिरा ज़मीर ही अब मेरा रहनुमा ठहरा ये हर मक़ाम पे मुझ को बड़ा बना देगा जो देख लेगा तुम्हें कोई मंचला मौसम तुम्हारी ज़ुल्फ़ से काली घटा बना देगा तू दूसरों से है बरतर न ये समझ 'रहबर' ये ए'तिबार तुझे खोखला बना देगा